नरेश सक्सेना की कविताओं में बाल-मनोविज्ञान

Authors

  • सबनम भुजेल शोध छात्रा, हिंदी विभाग सिक्किम विश्वविद्यालय, गंगटोक

Keywords:

बाल मनोविज्ञान, पूँजीपति वर्ग, देश, मजदूरी, समाज

Abstract

शोध सारांश:-

          समकालीन हिंदी कविता विस्तृत लोक के विकसित भावबोध की कविता है और यह एक ऐसा दौर है जिसने साहित्य की प्रवृत्तियों में नयापन लाया साथ ही ऐसे जीवन को केंद्र में लाने का प्रयास किया जिसने समाज को पूरी तरह झकझोर दिया। इसी साहित्य-धारा ने एक ऐसी प्रवृत्ति को जन्म दिया, जिसने बचपन से ही सारी जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए मजबूर बालवर्ग के जीवन को एक नया मोड़ दिया, जिसे आज बाल-मनोविज्ञान या बाल-विमर्श के रूप में भी जाना जाना जाता है। बाल-मनोविज्ञान का संबंध बच्चों की सोच एवं चेतना से है। साहित्य के क्षेत्र में यह आधुनिक युग की देन है। बच्चे जीवन की सबसे अनमोल निधि होते है। उनका स्वभाव सरल, सहज एवं उत्साह से भरा होता है लेकिन यह उत्साह से  भरी जिंदगी चंद बच्चों को ही मिलती है। आज भी अधिकतर बच्चे बाल-मजदूरी के शिकार हो रहे हैं इसलिए समकालीन हिंदी कविता में बाल-मनोविज्ञान एक प्रमुख समस्या बनकर उभरा है। यह युग ही उनके लिए संक्रमण का युग रहा। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक उथल-पुथल के चलते देश बदल रहा था। ऐसे में साहित्य की परिधि में न आने वाले विषयों पर भी प्रभाव पड़ने लगा। इन बदलावों ने बाल-मनोविज्ञान को भी नई दिशा दी। विशेषकर समकालीन हिंदी कविता के कवि नरेश सक्सेना की कविताओं ने वह स्थान लिया और बच्चों के लिए लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। उनकी कविताओं में बाल-मनोविज्ञान की ऐसी छवि दिखाई पड़ती है जिसने बाल-मजदूरी से ग्रसित जीवन को उनके हक की आवाज दी।

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Published

2022-11-24

How to Cite

सबनम भुजेल. (2022). नरेश सक्सेना की कविताओं में बाल-मनोविज्ञान. पूर्वोत्तर प्रभा, 2(1 (Jan-Jun), p: 27–32. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/81