'पूस की रात’कहानी की प्रासंगिकता
Keywords:
यथार्थवाद, किसान जीवन, गरीबी, भारत, वर्ग-समाज, व्यवस्था, जमींदारी प्रथा इत्यादिAbstract
सारांश
हिंदी साहित्य लेखन में यथार्थवादी चिंतन को विकसित करने में प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ का महत्त्वपूर्ण योगदान है।1930 ई॰ में रचित यह कहानी यथार्थवादी कहानियों में अग्रणीय है। इस कहानी में आर्थिक रूप से जूझते किसान जीवन के संघर्ष को बखूबी अभिव्यक्ति मिली है । जब देश अंग्रेजों की पराधीनता, दमन, शोषण के साथ ईसाई धर्म-संस्कृति एवं स्वराज्य की देशव्यापी लहर से आंदोलित हो रहा था तब प्रेमचंद ने किसानी समस्या को जन मानस के लिए सुलभ कराया और किसान वर्ग की चिंताओं को यथार्थपरक ढंग से अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया। पूस की रात कहानी का हल्कू वर्तमान समाज की किसानी जीवन से जूझ रहे आम आदमी का प्रतिनिधित्व करता है,जो लगातार श्रम करते हुए भी अपने जीवन में किसी तरह का कोई सुधार नहीं देखता बल्कि जीवन की आम जरूरतों से भी लगातार वंचित होते रहने की पीड़ा से त्रस्त है | किसान जो अन्न उपजाता है,लोगों की भूख को शांत करता है वही ठंड से अपने को बचाने के लिए कम्बल तक की सुविधा नहीं ले पाता है,मेहनत और श्रम से तैयार फसल के नष्ट हो जाने की स्थिति वह स्वीकार कर लेता है क्योंकि उसे खेतों की रखवाली के लिए ठण्ड में मरना नहीं पड़ेगा | वह एक मजदुर बनने की स्थिति में आने को तैयार होता है पर ठंड से ठिठुरने से बचा रह जायेगा इस बात से उसे तसल्ली मिलती है ,किसान जीवन की यह बड़ी विडंबना है जिसको कहानी में रेखांकित किया गया है | 1930 की प्रकाशित यह कहानी आज भी प्रासंगिक है ,किसान के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया है बल्कि वे अपनी समस्याओं से मुक्ति के लिए जीवन खत्म कर रहे हैं ,जो वर्तमान समाज के निर्मम होने की ओर संकेत करता है |
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