खिड़की के सहारे खुलता जीवन का रहस्य दीवार में एक खिड़की रहती थी के संदर्भ में
Keywords:
काव्यात्मक भाषा, निम्नमध्यमवर्गीय जीवन, जादुई यथार्थवादAbstract
सारांश
विनोद कुमार शुक्ल अपने शैली के विशिष्ट रचनाकार हैं। भाषा और शिल्प -वैशिष्ट्य के स्तर पर उनके उपन्यास अन्यतम है। ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ उपन्यास में रघुवर प्रसाद और सोनसी की प्रणय –कथा है जिसमें पूरा परिवेश गुंजायमान है। पात्रों का संवाद पेड़ –पौधे, हाथी, पक्षियों आदि से होता है। यहाँ एक ठेठ भारतीय प्रेम कथा का आदर्श हमारे सामने आता है। तमाम पात्र अभावग्रस्तता से जूझते हुए भी जीवन को खुलकर जीते हैं। कोई सामाजिक या राजनैतिक उथल –पुथल की माँग पूरे उपन्यास में कहीं नहीं मिलता। होने और न होने का रहस्य उस ‘खिड़की’ के सहारे खुलता है। उपन्यास में प्रकृति और मानव का जो संबंध दर्शाया गया है उसमें दोनों एकाकार हो गए हैं। कविताई भाषा और प्रयोगधर्मी शिल्प के कारण इस उपन्यास के कथ्य पर प्रायः कम ही बात होती है। अपने युगीन संत्रास, रोष, बुराइयों आदि के स्थान पर सभी पात्रों में जीवटता के गुण के कारण इस उपन्यास को रेणु की परंपरा से भी जोड़कर देखा जाता है। भाषा और संवादशैली के कारण उपन्यास काव्यमय प्रतीत होता है।
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