http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/issue/feed पूर्वोत्तर प्रभा 2024-01-02T11:46:14+00:00 प्रधान संपादक, पूर्वोत्तर प्रभा journal.poorvottar.prabha@cus.ac.in Open Journal Systems <p><strong>'</strong><strong>पूर्वोत्तर प्रभा</strong><strong>' </strong>हिंदी विभाग, सिक्किम केंद्रीय विश्वविद्यालय, गंगटोक द्वारा पहली बार भाषा और साहित्य के विषय में एक ओपन एक्सेस सहकर्मी की समीक्षा की गई रेफरीड शोध पत्रिका है। पत्रिका का उद्देश्य शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों, विद्वानों और छात्रों को भाषा और साहित्य और इसके संबद्ध क्षेत्रों- समाज, संस्कृति, कला और मीडिया के व्यापक क्षेत्र में वास्तविक शोध के माध्यम से ज्ञान प्रदान करने और साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करना है जिससे उत्तर पूर्व भारत के अन्य हिस्सों और दुनिया के संभावित शोधकर्ताओं की हितों को बढ़ावा मिलता है | पत्रिका का उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाले शोध पत्रों, महत्वपूर्ण दृष्टिकोणों को बढ़ावा देना है जो भाषाओं और साहित्य, विशेष रूप से हिंदी के क्षेत्र में प्रामाणिक ज्ञान का योगदान करते हैं। पत्रिका केंद्रित विषयों और नवीन विचारों को प्रोत्साहित और प्रेरित करती है। यह ओपन एक्सेस शोध पत्रिका विश्वव्यापी शोध समुदाय के लिए लाभदायक है।</p> <pre class="tw-data-text tw-text-large tw-ta" dir="ltr" style="text-align: left;" data-placeholder="Translation"><strong><span class="Y2IQFc" lang="hi">ISSN (Online) : </span></strong><strong><span style="color: blue;">2583-5777</span></strong></pre> <pre class="tw-data-text tw-text-large tw-ta" dir="ltr" style="text-align: left;" data-placeholder="Translation"><strong><span class="Y2IQFc" lang="hi">वर्ष प्रारंभ</span></strong>: 2021 -</pre> <pre class="tw-data-text tw-text-large tw-ta" dir="ltr" style="text-align: left;" data-placeholder="Translation"><span class="Y2IQFc" lang="hi"><strong>आवृत्ति</strong> : </span><span class="Y2IQFc" lang="hi">अर्धवार्षिक<br /></span></pre> <div class="oSioSc"> <div id="tw-target"> <div id="kAz1tf" class="g9WsWb"> <div id="tw-target-text-container" class="tw-ta-container F0azHf tw-lfl" tabindex="0"> <pre class="tw-data-text tw-text-large tw-ta" dir="ltr" style="text-align: left;" data-placeholder="Translation"><span class="Y2IQFc" lang="hi"><strong>विषय</strong> : </span><span class="Y2IQFc" lang="hi">हिंदी साहित्य, हिंदी भाषा</span></pre> <div class="oSioSc"> <div id="tw-target"> <div id="kAz1tf" class="g9WsWb"> <div id="tw-target-text-container" class="tw-ta-container F0azHf tw-lfl" tabindex="0"> <pre id="tw-target-text" class="tw-data-text tw-text-large tw-ta" dir="ltr" style="text-align: left;" data-placeholder="Translation"><span class="Y2IQFc" lang="hi"><strong>प्रकाशन की भाषा</strong> : हिन्दी</span></pre> </div> </div> </div> </div> <pre class="tw-data-text tw-text-large tw-ta" dir="ltr" style="text-align: left;" data-placeholder="Translation"><span class="Y2IQFc" lang="hi"> </span></pre> </div> </div> </div> </div> <pre class="tw-data-text tw-text-large tw-ta" dir="ltr" style="text-align: left;" data-placeholder="Translation"><span class="Y2IQFc" lang="hi"> </span></pre> http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/147 कुलपति-संदेश 2024-01-02T09:20:58+00:00 <p>‘पूर्वोत्तर प्रभा’ के वर्ष-3, अंक-1 का प्रकाशन सिक्किम विश्वविद्यालय के लिए गौरव का विषय है। इस अंक में शामिल सभी शोध-पत्र अनुसंधान के उच्च मानकों पर आधारित हैं। इसमें शामिल शोध-पत्र बहुविषयक होने के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमें यह बात साझा करते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में पूर्वोत्तर प्रभा जर्नल एक सेतु का कार्य कर रहा है। विगत दो वर्षों में यह जर्नल उत्तरोत्तर प्रगति की दिशा में अग्रसर है। मुझे विश्वास है, पूर्वोत्तर प्रभा जर्नल भविष्य में इसी तरह अनुसंधान की दिशा में बेहतर मानदंड स्थापित करने का कार्य करेगा। इस अंक के उत्कृष्ट संपादन हेतु मैं प्रो. प्रदीप के शर्मा जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ। </p> <p><strong>प्रो. अविनाश खरे</strong></p> <p><strong>(कुलपति, सिक्किम विश्वविद्यालय, गांतोक)</strong></p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/151 संपादकीय 2024-01-02T10:51:45+00:00 <p>प्रोफेसर प्रदीप के शर्मा, संपादक, पूर्वोत्तर प्रभा&nbsp;</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/148 अनुक्रम 2024-01-02T10:00:00+00:00 <p>पूर्वोत्तर प्रभा, अंक- 3, 2023&nbsp;</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/149 नव माध्यम के सैद्धांतिक अभिलक्षण 2024-01-02T10:37:31+00:00 <p>मनुष्य का विकास सामाजिक प्राणी के रूप में होने के साथ ही संचार की विभिन्न प्रणालियाँ भी विकसित होने लगीं। कालक्रम में वैज्ञानिक उन्नति के साथ संचार माध्यमों का अभूतपूर्व विकास हुआ है। अनुसंधान और आविष्कारों की निरंतरता का परिणाम है- नव माध्यम और इनसे जुड़ी प्रौद्योगिकी।&nbsp;नव माध्यम का विकास परिवर्तन की तीव्रगति का प्रतीक है। नई प्रौद्योगिकी से विकसित नव माध्यम के सौद्धांतिक अभिलक्षणों का विश्लेषण इस आलेख का मुख्य उद्देश्य है। नव माध्यम के विकास का लाभ संचार व्यवस्था व अन्य कई दृष्टियों से समूची मानवता को कई रूपों मिल रहा है। भाषायी दृष्टि से सूचना प्रौद्योगिकी को विकसित करने के दौर में मूलतः प्रयुक्त अंग्रेज़ी के अलावा आज हिंदी सहित दुनिया की कई भाषाओं को भी नव माध्यमों का लाभ मिल पा रहा है।</p> <p>कतिपय भारतीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में एक विषय के रूप में ‘नव माध्यम’ विषयक अध्ययन विगत दो दशकों से जारी है। विश्वविद्यालयों के पत्रकारिता व जनसंचार विभागों में एक नए विषय के रूप में जहाँ हिंदी माध्यम से अध्ययन हो रहा है। एक मुक्त विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में ‘न्यू मीडिया’ संबंधी पाठ्यपुस्तक मेरे विद्यार्थी हाथ में देखने का मुझे अवसर मिला। उसमें केवल सामाजिक माध्यम (सोशल मीडिया) का विश्लेषण ‘न्यू मीडिया’ के रूप में प्रस्तुत है। कहीं भी नव माध्यम के&nbsp; सैद्धांतिक चिंतन की ओर ध्यान नहीं दिया गया है, जबकि यह चिंतन अत्यंत महत्वपूर्ण है। यही चिंतन नव विकसित, विकासरत अवधारणाओं, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक परिस्थितियों को समझने में उपयोगी है। नए परिवेश में पाठ के अध्ययन की दृष्टि से इनकी समझ अपेक्षित है। डिजिटल मानविकी (Digital Humanities) की समझ विकसित करने की दृष्टि से भी यह चिंतन महत्वपूर्ण है।</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/152 अपने समय का विलक्षण रंगशिल्पीः हबीब तनवीर 2024-01-02T11:01:56+00:00 <p>भारतीय रंगमंच और पाश्चात्य रंगमंच के संदर्भ में विविध विमर्शों की सुदीर्घ श्रृंखला रही है। बहुत से निर्देशकों ने पाश्चात्य रंगशिल्प को अपनाया, बहुत से निर्देशकों ने शास्त्रीय रंगशिल्प का अनुशीलन किया, ऐसे भी बहुत से निर्देशक हैं जिन्होंने उक्त दोनों के साथ लोकरंग शैली के सामंजस्य पर बल दिया। आज भी उक्त सभी प्रवृत्तियाँ भारतीय रंगमंच की अंग हैं। तथापि हबीब तनवीर जैसे रंग निर्देशक ने एक ऐसी शैली विकसित की, जिसने भारतीय रंगजगत के एक बिल्कुल नवीन पक्ष को उद्घाटित किया। हबीब ने पाश्चात्य रंगमंच का अध्ययन और आधुनिक भारतीय रंगमंच के विविध पक्षों का अनुशीलन के आधार पर यह स्थापित किया कि भारतीय नाट्य की आत्मा वास्तव में लोकनाट्य की विविध शैलियाँ हैं और अपनी विविध नाट्य प्रस्तुतियों के माध्यम से अपनी इस स्थापना को उन्होंने सिद्ध भी किया। हबीब ने बिल्कुल अलग नाट्य शैली विकसित की, जिसे अब नया थिएटर के रूप में जाना जाता है।</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/153 बदरी विशाल पित्ती की ‘कल्पना’ 2024-01-02T11:09:41+00:00 <p>भाषा एवं साहित्य के विकास में ‘कल्पना’ हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका रही है जिसने अपने कलेवर और प्रकाशन के क्षेत्र में हिंदी साहित्य में अभूतपूर्व योगदान दिया। महान उदारवादी छवि वाले बदरी विशाल पित्ती जी ने इसे तीन दशकों तक प्रकाशित कर समूचे साहित्य जगत में अमिट छाप छोड़ने का साहस किया। दक्षिण भारत के हैदराबाद से प्रकाशित इस पत्रिका का साहित्यिक अवदान बहुत अधिक रहा है जो इस पत्रिका में एक बार छप जाता था । वह लेखक के रूप में देश उसे जानने लगता था। इस पत्रिका के संपादकों ने विशुद्ध रूप से नवीनतम सामग्री पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जो सदा प्रासंगिक बनी रही। हिंदी साहित्य में ‘कल्पना’ का अवदान आने वाले पचास वर्षों के बाद भी पाठकों और लेखकों के मानस पटल पर चित्रांकित रहेगा।</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/154 भारतीय संस्‍कृति और हिंदी 2024-01-02T11:17:00+00:00 <p>भारतीय संस्‍कृति में वेद से लेकर पुराणों तक जितने भी जीवन सूत्र दिए गए है, हिंदी ने उन्‍हें अपने साहित्‍य में संजोने का सफल प्रयास किया तथा देश की विभिन्‍न अन्‍य भाषाओं और लोक-संस्‍कार, पूजा-पाठ आदि संजोए गए और अलग-अलग प्रदेश में अपनी-अपनी लोक संस्‍कृति समृद्ध होती चली गई जो भारतीय संस्‍कृति में समाविष्‍ट हो गई। भारतीय संस्‍कृति जोड़ने वाली सामाजिक संस्‍कृति रही है जो सभी विभिन्‍नताओं का समायोजन करती है। भारतीय संस्‍कृति के प्रमुख सूत्र हैं— वसुधैव कुटुम्‍बकम्, यत्र विश्‍वम् तथा भवत्‍येक नीडम्। भारतीय संस्‍कृति संपूर्ण विश्‍व को अपने अंदर समाहित करने वाली है।</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/155 जीवन के यथार्थ को समर्पित कहानी संग्रह और संजीदा कथाकार नवनीत नीरव 2024-01-02T11:22:51+00:00 <p>नवनीत नीरव की&nbsp; 'दुखान्तिका' अपने विषय वैविध्य में जीवन के प्रत्येक पहलू को समेटती हुई कहानियों का संग्रह है। हमारे समाज की वास्तविक परिस्थितियों का वर्णन वास्तविकता से लेखक ने किया है। इन्होंने व्यक्तिवादी परंपरा से ऊपर उठकर सामाजिक परंपरा, सामाजिक मुद्दों, सामाजिक वास्तविकता से संबंधित कहानियां रची हैं।</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/156 स्वाधीनता संग्राम और आधुनिक हिन्दी कविता 2024-01-02T11:28:43+00:00 <p>आधुनिक हिन्दी कविता का स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आधुनिक काल के कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों के दिलों में राष्ट्रीय भावनाएँ जागृत कीं। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के कारण ही हमारी मातृभूमि की रक्षा हुई।हर कवि के हृदय में मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम समाया रहता है। उनकी यही श्रद्धा पूंजीभूत होकर देश के देवत्व को पवित्रता की प्रतिमा के रूप में साकार कर देती है।</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/157 विश्व पटल पर हिंदी तथा भारतीय संस्कृति 2024-01-02T11:39:01+00:00 <p>हिंदी सिर्फ भारत की भाषा नहीं , वह विश्व में भी अपना स्थान बना चुकी है ।हिंदी समस्त विश्व की है। यही कारण है कि आज विश्व हिंदी&nbsp; दिवस के लिए एक दिन भी सुनिश्चित कर लिया है। जिस तरह हमारे भारत में 14 सितंबर को हिंदी&nbsp; दिवस मनाया जाता है ।उसी तरह दस &nbsp;जनवरी को&nbsp;&nbsp; विश्व&nbsp;&nbsp; हिंदी दिवस मनाने की परंपरा&nbsp; बनी। यह हिंदी केलिए गौरव पूर्ण है।&nbsp; विश्व हिंदी दिवस ही मनाने की शुरुआत क्यों हुई। विश्व में और भी कई भाषाएं हैं। उनके लिए&nbsp; कोई दिवस विशेष क्यों नहीं बना, यह प्रश्न&nbsp; उठता है खैर…! हमें&nbsp; इसकी गहराई में नहीं जाना।&nbsp; विश्व में हिंदी ने जो स्थान बनाया है वह खास है।&nbsp; इसने अपना स्थान बनाने में अलग-अलग रूपों में अपने को प्रतिष्ठित किया। साहित्य में तो शुरु से ही इसका&nbsp; शीर्षस्थ स्थान था। विदेशों में&nbsp; फिल्मों,उसके गीतों तथा नाटक के माध्यम से विकसित हुई है। किसी भी भाषा या बोली के लोग क्यों ना हो हिंदी के बिना उनका काम पूर्ण नहीं होता। भले ही उनकी हिंदी व्याकरण सम्मत या परिमार्जित ना हो, लिंग दोष बोलने में&nbsp; आए, उच्चारण दोष&nbsp; हो।&nbsp; हिंदी&nbsp; में एक सहजता&nbsp; सरलता है। जो इसे&nbsp; महत्त्वपूर्ण बनाता है ।</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/158 प्रेमचन्द के साहित्य में साम्प्रदायिक सद्भावना 2024-01-02T11:46:14+00:00 <p>भारत जैसे देश में साम्प्रदायिकता एक कोढ़ के समान है। यह ऐसी है बिमारी है जो भारत देश को अंदर ही अंदर कमजोर करती है। भारत एक ओर जहाँ वैश्वीकृत होकर विकास के मार्ग पर अग्रसर हो रहा है, वहीं साम्प्रदायिक ताकतें इसके मार्ग में हमेशा रोड़ा लगाते आई है। भारत की आजादी से पहले भी साम्प्रदायिक ताकतें सक्रिय थी, आजादी के बाद एक सपना देखा गया था कि अब भारत साम्प्रदायिकता से मुक्त होकर एक नया राष्ट्र बनेगा, किन्तु पाकिस्तान की स्थापना और कश्मीर मुद्दे ने इसे हमेशा के लिए भारतवासियों के हृदय में बसा दिया। आज भले कश्मीर की समस्या एक समाधान के रुप में दिखाई पड़ रही है, किन्तु केन्द्र शासित प्रदेश बनने के बाद कश्मीर किस मार्ग पर बढेगा, यह तो समय ही बताएगा। उधर पाकिस्तान हर वक्त भारत की शांति भंग करने का नया-नया तरीका इजाद करता रहता है। कश्मीर के केन्द्र शासित प्रदेश बनने को पाकिस्तान किस नजर से देखता है, यह उनके रवैये से पता चल रहा है।</p> 2024-01-02T00:00:00+00:00 Copyright (c) 2024 पूर्वोत्तर प्रभा