हिंदी साहित्य पर मार्क्सवाद का प्रभाव एवं वैचारिक पृष्ठभूमि

Authors

  • रज्जन प्रसाद शुक्ल एवं डॉ. जया द्विवेदी महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी एवं के. बी. पी. जी. कॉलेज,मिर्जापुर

Keywords:

कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो, मार्क्सवादी, समाजवादी, प्रगतिशील, विचारधारा

Abstract

शोध-सारांश :

            मार्क्सवाद का साहित्यिक आधार प्रगतिवाद है या यूँ कहा जा सकता है कि प्रगतिवादी विचारधारा का मूलाधार मार्क्सवाद या साम्यवाद है। मार्क्सवादी विचारधारा का उद्देश्य समाज में साम्यवादी व्यवस्था स्थापित करना, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह विद्रोह, हिंसा एवं क्रांति का पुरजोर समर्थन करता है। मार्क्सवादी साहित्य में शोषितों, वंचितों और श्रमिकों को शोषण के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रेरित एवं उत्तेजित किया गया है। “मार्क्सवाद मानव सभ्यता और समाज को हमेशा से दो वर्गों शोषक और शोषित में विभाजित मानता है।” (गाबा, 2010, पृ. 343) माना जाता है कि साधन संपन्न वर्ग ने हमेशा से उत्पादन के संसाधनों पर अपना अधिकार रखने की कोशिश की तथा बुर्जुआ विचारधारा की आड़ में एक वर्ग को लगातार वंचित बनाकर रखा। शोषित वर्ग को इस षड्यंत्र का भान होते ही वर्ग संघर्ष की ज़मीन तैयार हो जाती है। वर्गहीन समाज (साम्यवाद) की स्थापना के लिए वर्ग संघर्ष एक अनिवार्य और निर्माणात्मक प्रक्रिया है।

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Published

2022-11-24

How to Cite

रज्जन प्रसाद शुक्ल एवं डॉ. जया द्विवेदी. (2022). हिंदी साहित्य पर मार्क्सवाद का प्रभाव एवं वैचारिक पृष्ठभूमि. पूर्वोत्तर प्रभा, 2(1 (Jan-Jun), p:105–115. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/91