हिंदी संपादन कला

Authors

  • बृजेन्द्र कुमार अग्निहोत्री सहायक प्रोफेसर (हिंदी) लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय, पंजाब

Keywords:

संपादन, संपादन-कार्य, संपादन-कला, सारगर्भित, , समसामयिक, लोकरुचि, लोकविश्वास

Abstract

शोध-सारांश

 

जिस प्रकार मनुष्यों में अपने भावों और विचारों को व्यक्त करने की स्वाभाविक इच्छा होती है, उसी प्रकार उन भावों और विचारों को सुंदरतम और चमत्कारपूर्ण बनाने की अभिलाषा भी उनमें होती है। यही अभिलाषा साहित्य-कला के मूल में रहती है और इसी की प्रेरणा से स्थूल, नीरस और विशृंखल विचारों को सूक्ष्म, सरल और शृंखलाबद्ध साहित्यिक स्वरूप प्राप्त होता है। संपादन कला की यह आधारभूमि है। संपादन कला के माध्यम से ही समाचार-पत्र या पत्रिका में प्रकाशित होने वाले समाचारों और लेखों को आकार प्रदान किया जाता है। सजाना, संवारना व पठनीय बनाना ही संपादन है। यह एक कला होती है। जो इस कला में पारंगत होते हैं, वे समाज में अपार ख्याति अर्जित करते हैं। अभ्यास द्वारा इस कला में निपुण हुआ जा सकता है। वस्तुतः संपादन- समाचार को छोटा करना, उसकी गलतियाँ छांटकर हटाना, गलत/अशुद्ध शब्द या वाक्य एवं तथ्य सही करना, अनावश्यक शब्द-संकेत हटाना, भाषा को प्रवाही तथा पठनीय बनाना, समाचार के अर्थ को समझ में आने लायक बनाना है। प्रस्तुत शोध लेख में संपादन कला के विविध आयामों का विवेचन किया गया है। जिसके अंतर्गत हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में संपादन कला के संक्षिप्त इतिहास, संपादक के दायित्व और संपादन की प्रक्रिया से परिचित कराया गया है। आशा है कि यह शोध लेख संपादन के क्षेत्र में शोध हेतु शोधार्थियों को प्रेरित करेगा।

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Published

2022-11-24

How to Cite

बृजेन्द्र कुमार अग्निहोत्री. (2022). हिंदी संपादन कला. पूर्वोत्तर प्रभा, 2(1 (Jan-Jun), p: 33–43. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/82