असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं की वस्तुस्थिति का अध्ययन 

Authors

  • डॉ. मनोरमा गौतम                                    

Abstract

शोध सारांश

भारत की आधी आबादी महिलाओं की है, भारत की ही क्यूं पूरे विश्व की आधी आबादी महिलाओं की है | यदि बात की जाए भारतीय महिलाओं की तो इसमे कोई दो राय नही कि भारत में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की है | रह – रहकर मस्तिष्क में एक ही सवाल कौंधता है जब स्त्री और पुरुष दोनों ही समाज की धुरी हैं तो फिर स्त्री ही दोयम दर्जे की प्राणी क्यूं ? और पुरुष क्यूं नही ? आखिर जब किसी भी समाज के निर्माण में दोनों की ही भागीदारी समान है तो एक ( पुरुष ) श्रेष्ठ कैसे और दूसरा ( स्त्री ) निम्न कैसे ? नर और मादा प्रकृति द्वारा निर्मित दो ऐसे प्राणी हैं जो संसार के पुनर्सृजन में बराबरी का योगदान देते हैं तो फिर यह भेद क्यों ? यह तो समाज की विडम्बना रही है कि असमानता के द्वारा असमान्यता की सृष्टि की जाती रही है |

स्त्री पुरुष की समानता पर अपना विचार व्यक्त करते हुए अनामिका कहती हैं कि – “ यहाँ समानता का अर्थ स्पर्धा नही वरन इतना ही है कि स्त्री को सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक , वैधानिक और पारिवारिक क्षेत्र में पुरुष के समान दर्जा मिले | उसे अपनी बौद्धिक तथा अन्य शक्तियों का विकास करने का समान अवसर मिलना चाहिए | समाज और परिवार का ढांचा ऐसा होना चाहिए कि श्रम और संपत्ति में दोनों का हिस्सा समान हो....ऐसे स्वस्थ समाज में स्त्री मादा नही व्यक्ति कहलाएगी | ”1 समयानुसार तथा परिस्थितिनुकूल स्त्री , घर – परिवार , समाज तथा पुरुषों की आवश्यकताओं को पूरा करती रही है | त्याग , दया , क्षमा , समर्पण आदि गुणों से परिपूर्ण स्त्री अपने हर दायित्व को पूरी शिद्दत और ईमानदारी से निभाती रही है किन्तु इन सबके बावजूद भी इस मर्दवादी समाज में उसे कोई विशेष स्थान या सम्मान नही मिला | समय बदल गया किन्तु स्थितियां आज भी नही बदली | स्त्री चाहे किसी भी धर्म , जाति , वर्ण , वर्ग , समुदाय , समाज की हो , शिक्षित हो या अशिक्षित , वृद्ध हो या युवा , नौकरी – पेशा हो या गृहणी , आत्मनिर्भर हो या किसी पर निर्भर गाँव की हो या शहर की , भारत के किसी भी  भू – भाग की हो , सभी की दुःख – दर्द पीड़ा समान है कहीं न कहीं , किसी न किसी रूप में उसे समाज की अवहेलना का शिकार होना ही पड़ता है | उसे कदम – कदम पर अपनी सुरक्षा तथा अस्तित्व के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है , और वह संघर्ष कर भी रही है |      

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डॉ. मनोरमा गौतम                                    

दिल्ली विश्वविद्यालय

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Published

2022-05-11

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डॉ.मनोरमागौतम                                    . (2022). असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं की वस्तुस्थिति का अध्ययन . पूर्वोत्तर प्रभा, 1(1 (Jan-Jun), p.85–89. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/65