संत कवि नितानंद के काव्य में विरह-वेदना

Authors

  • डॉ. अमित कुमार

Abstract

सारांश

संत काव्य परम्परा में अनेक संत कवियों का योगदान रहा है।संसार के झमेलों से अपने को बचाते हुए इन संत कवियों ने सांसारिक कर्मों को मनुष्य को उसकी मूल राह से भटकाने वाले कारक माना है, इसलिए उन्होंने समाज में भक्ति के भाव की स्थापना की कामना के साथ मनुष्य को नेक राह पर चलने की सीख दी है। अनेक संत कवियों को उनके जीवन-काल में वह प्रसिद्धि प्राप्त हुई, जिसके वे हकदार थे। आलोचकों की पसंद-नापसंद ने भी उनके मूल्यांकन में महत्ती भूमिका निभाई है। आज भी अनेक ऐसे कवि हमारे यहाँ हैं, जिनके काव्य पर चर्चा करना प्रासंगिक जान पड़ता है। नितानंद ऐसे ही कवि हैं, जिन पर अपेक्षाकृत कम बातचीत हुई है।इसके अनेक कारण हो सकते हैं। बहरहाल,वे संत काव्य परंपरा के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनका जन्म 1710 ई. के आस-पास हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल नगरमें हुआ था। नितानंद जी का मूल नाम नंदलाल था। उनके गुरु गुमानी दास थे। नितानंद की रचनाओं का एकमात्र संकलन ‘सत्य सिद्धांत प्रकाश’ है जिसके संचयन का श्रेय भोलादासप्रज्ञाचक्षुको जाता है। यहभोलादास जी की वजह से ही संभव हो पाया कि संत नितानंद की वाणी का लिखित रूप आज हमें देखने को मिल सका है।

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Author Biography

डॉ. अमित कुमार

सहायक प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग
हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय,महेंद्रगढ़-123031

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Published

2022-05-11

How to Cite

डॉ. अमित कुमार. (2022). संत कवि नितानंद के काव्य में विरह-वेदना. पूर्वोत्तर प्रभा, 1(1 (Jan-Jun), p.70–72. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/63