साहित्‍य और प्रकृति का अंतर्संबंध

Authors

  • डॉ. वासुदेवन शेष

Keywords:

मानवेतर जगत, नैसर्गिक, सहचरी, कौतुहल, चेतना का विकास, सौन्दर्य का अक्षय भण्डार, अविछिन्न सम्बन्ध

Abstract

सारांश

साहित्‍य का प्रकृति से हमेशा अटूट संबंध रहा है या यूँ भी कहा जा सकता है प्रकृति ने अपनी छटा से साहित्‍य में अनेकों रंग बिखरे है ।प्रकृति मानव की सदैव सहचरी रही है । रामायण काल से ही प्रकृति ने भगवान का चित्रकूट प्रवास, गंगा तट , प्रणकुटी में रहना आदि ने चाहे फिर वे वाल्‍मिकी ऋषि हो या तुलसीदास जी उन्‍होने अपनी साहित्‍य में प्रकृति की अदभूत छवि की भूरि भूरि प्रंशसा की है जिससे रामायण महाकाव्‍य जन मानस के पटल पर छा गया । जनकपूर में सीता के साथ प्रथम वाटिका मिलन और वहॉं की प्राकृतिक  छवि ने राम को मोह लिया ।

   कालांतर में महाकवि कालीदास, पंत, महादेवी, हरिऔध, राम कुमार वर्मा, भारतेन्‍दु जयशंकर प्रसाद, निराला और बच्‍चन ।  हिंदी के ही नहीं अन्‍य भाषाओं के साहित्‍यकारों ने कवियो ने अपने साहित्‍य में प्रकृति को जोडा है । प्रकति के अनोखे रूप को अपने संवादों में नाटको में उपन्‍यासों में कहानियों में उकेरा है । हमें यह कहने में कोई संकोच नही जहॉं प्रकृति नहीं वहॉं साहित्‍य नहीं।

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Author Biography

डॉ. वासुदेवन शेष

पी.एच.डी. डी.लिट्
विदयावाचस्‍पति विदयासागर, विदया भास्‍कर 

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Published

2022-05-11

How to Cite

डॉ. वासुदेवन शेष. (2022). साहित्‍य और प्रकृति का अंतर्संबंध. पूर्वोत्तर प्रभा, 1(1 (Jan-Jun), p.90–93. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/61