साहित्य और प्रकृति का अंतर्संबंध
Keywords:
मानवेतर जगत, नैसर्गिक, सहचरी, कौतुहल, चेतना का विकास, सौन्दर्य का अक्षय भण्डार, अविछिन्न सम्बन्धAbstract
सारांश
साहित्य का प्रकृति से हमेशा अटूट संबंध रहा है या यूँ भी कहा जा सकता है प्रकृति ने अपनी छटा से साहित्य में अनेकों रंग बिखरे है ।प्रकृति मानव की सदैव सहचरी रही है । रामायण काल से ही प्रकृति ने भगवान का चित्रकूट प्रवास, गंगा तट , प्रणकुटी में रहना आदि ने चाहे फिर वे वाल्मिकी ऋषि हो या तुलसीदास जी उन्होने अपनी साहित्य में प्रकृति की अदभूत छवि की भूरि भूरि प्रंशसा की है जिससे रामायण महाकाव्य जन मानस के पटल पर छा गया । जनकपूर में सीता के साथ प्रथम वाटिका मिलन और वहॉं की प्राकृतिक छवि ने राम को मोह लिया ।
कालांतर में महाकवि कालीदास, पंत, महादेवी, हरिऔध, राम कुमार वर्मा, भारतेन्दु जयशंकर प्रसाद, निराला और बच्चन । हिंदी के ही नहीं अन्य भाषाओं के साहित्यकारों ने कवियो ने अपने साहित्य में प्रकृति को जोडा है । प्रकति के अनोखे रूप को अपने संवादों में नाटको में उपन्यासों में कहानियों में उकेरा है । हमें यह कहने में कोई संकोच नही जहॉं प्रकृति नहीं वहॉं साहित्य नहीं।
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