कबीर पर दावेदारी
Keywords:
संवेदना, आलोचना, धर्म, कर्मकांड, शास्त्र, अध्यात्म, भागीदारी, लोकतंत्रAbstract
शोध सार :
कबीर का नित नया बनता-बदलता पाठ हिंदी आलोचना का एक रोचक अध्याय है. आलोचकों ने कबीर का नया पाठ निर्मित करने के साथ-साथ कबीर पर अपना-अपना दावा भी पेश किया है. सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के सन्दर्भ में कबीर की कविता को पढने के कारण हिंदी आलोचना ऐसे निष्कर्ष निकालती रही है. कबीर की कविता को पढ़ते हुए उसमें निहित सामाजिक-सांस्कृतिक छवियों का उद्घाटन करने से कबीर का एक अलग ही पाठ संभव होता है. इस पद्धति से पढ़ने पर कबीर किसी समुदाय विशेष तक सीमित नजर नहीं आते हैं. उनकी भक्ति का मार्ग सबके लिए खुला है बस शर्त यही है कि भक्त का मन निर्मल हो. निर्मल मन वाले लोग ईश्वर के करीब होते हैं, किसी तरह की सामुदायिक संकीर्णता में विश्वास नहीं करते हैं और मानव मात्र की सेवा में यकीन करते हैं.
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