राजस्थान की सन्त-वाणी में प्रकृति और पर्यावरण
Keywords:
राजस्थान, संत, विश्नोई, रामस्नेही, संप्रदाय, प्रकृति, पर्यावरणAbstract
शोध – सारांश
निर्गुणमार्गी संतों ने मानव जीवन के साथ जीवमात्र के कल्याण की कामना की है और उनके लिए वनस्पति जीवन भी अपवाद स्वरूप नहीं। राजस्थान में अनेक संतों ने उसी भावभूमि पर एक निराकार ईश्वर की बनाई इस सृष्टि का समता की दृष्टि से देखने का ज्ञानमार्गी उपदेश दिया। इन संतों से जो संप्रदाय या पंथ चल निकले वे राजस्थान की धार्मिक व सांस्कृतिक परंपराओं की अनूठी पहचान बन गये हैं। राजस्थान में वि. सं. 1542 में सन्त जाम्भोजी जी ने बिश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना की। वे प्राकृतिक व्यवस्था में अटूट विश्वास करते थे तथा भविष्य में होने वाले पर्यावरण-असंतुलन के प्रति सचेष्ट थे। इसलिए उन्होंने जीव-दया एवं हरे वृक्षों की सुरक्षा के लिए अनिवार्यता प्रतिपादित की। जाम्भोजी की मान्यता थी कि जीव-जन्तु प्रकृति प्रदत अमूल्य निधि हैं। हरे वृक्ष तो प्राणवायु हैं अतः उनका संहार मानव समाज का संहार है। जांभोजी के पश्चात कवि वील्होजी ऐसे संत हुए जिन्होंने जाम्भोजी के मानवतावादी धर्म, जीव-दया, हरे वृक्षों की सुरक्षा आदि कार्यो को जारी रखा। राजस्थान में जाम्भोजी के परवर्ती विभिन्न पंथ, संप्रदायों के संतों ने प्रकृति को अधिकांशत: उपदेशात्मक रूप में ग्रहण किया प्रकृति के भिन्न-भिन्न व्यापारों की ओर संकेत करते हुए न केवल ब्रह्म को सर्वव्यापी बताया अपितु इसे प्रतीक रूप में ग्रहण कर अपने उपदेशों को आम जनता के लिए सरल बनाया। संत रामचरण कहते हैं कि पात-पात में पुरुषोत्तम का निवास है, माटी का महादेव बनाकर उस पर पत्ते तोड़कर चढ़ाना, परमात्मा को दुख देना है। इस प्रकार रामस्नेही संप्रदाय में जीवो की रक्षा का इतना अधिक ध्यान रखा जाता है कि रामस्नेही जन पानी कपड़े से छान कर प्रयोग में लाते हैं, सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करते, रात में दीपक नहीं जलाते और वर्षा ऋतु में चार मास एक स्थान पर व्यतीत करते हैं। इस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में धार्मिक मान्यताओं की अहम भूमिका रही । इनका मूल सिद्धांत ही प्रकृति और मनुष्य के बीच में समन्वय है। इनकी मान्यताएं हमेशा से प्रकृति के संरक्षण में निहित रही । संतमत के अनुसार मनुष्य का अस्तित्व ही प्रकृति से निर्मित है, इनकी प्रत्येक मान्यता एवं परम्परा में प्रकृति का संरक्षण केन्द्र बिन्दु है।
Downloads
Downloads
Published
How to Cite
Issue
Section
License
Copyright (c) 2022 पूर्वोत्तार प्रभा
![Creative Commons License](http://i.creativecommons.org/l/by-sa/4.0/88x31.png)
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 International License.