स्वाधीन भारत के दो दशक पहले : हिंदी साहित्य में मोहभंग
Keywords:
मोहभंग, हिंदी, नई कविता, लोकतंत्र, राजनीति इत्यादिAbstract
शोध-सारांश:
प्रस्तुत लेख भारतीय स्वाधीनता के शुरूआती बीस वर्षों के दरम्यान लोकतान्त्रिक मूल्यों की गिरावट को हिंदी साहित्य में अभिव्यक्ति किस रूप में दर्ज़ हुई, उसी को जानने का प्रयास करता है। दरअसल भारत की स्वाधीनता के पहले दो दशक का हिंदी साहित्य लोकतंत्र के लगातार छीजते जाने और संकट में पड़ते जाने का साहित्य है। उस दौर में हर तरफ़ लोगों के सपनों, आशाओं और आकांक्षाओं के टूटने और बिखरने की अनुगूँज सुनाई देती थी। जहाँ ईमानदारी, सच्चाई, भाईचारा, अहिंसा, आज़ादी इत्यादि सब अपना अर्थ खो चुके थे। यह वह समय था जब ‘सहानुभूति और प्यार के नाम पर एक आदमी दूसरे को, अँधेरे में ले जाता और उसकी पीठ में छुरा मार देता है’।
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Published
2022-05-11
How to Cite
डॉ. धनंजय सिंह. (2022). स्वाधीन भारत के दो दशक पहले : हिंदी साहित्य में मोहभंग. पूर्वोत्तर प्रभा, 1(1 (Jan-Jun), p.62–65. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/53
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शोध लेख
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