हिन्दी सिनेमा में दलित जीवन की अभिव्यक्ति
Keywords:
सिनेमा, दलित, सवर्ण, वर्ण व्यवस्था, जाति, शिक्षा, निर्देशक, हाशिया उत्पीड़न, व्यथा, आक्रोश, सहानुभूति इत्यादिAbstract
शोध सारांश
वर्तमान समय में साहित्य की भांति ही सिनेमा भी एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके माध्यम से समाज अपने अक्स को देखता है । किन्तु यहाँ भी दलित समाज वर्ण व्यवस्था के चलते अपने को हाशिये पर पाता है । लगभग सौ वर्षों के इतिहास में समाज के विभिन्न मुद्दों को लेकर कई फिल्में बनी है किन्तु दलित समाज के उद्धार करने की चिंता,उनमें चेतना का संचार करने का लक्ष्य लेकर फिल्में प्रायः न के बराबर ही बनी हैं ।जहां कहीं उनसे जुड़े प्रसंगों का चित्रण हुआ है उनमें उन्हें लाचार, बेबस और असहाय रूप में चित्रित किया गया है । कुछ नया दिखाने का प्रयत्न नहीं हुआ है बल्कि हमेशा वे इसी रूप में दिखाये जाते हैं जिसके कारण समाज में उनकी एक छवि बन गयी है और अक्सर वे उनके प्रति नकारात्मक सोच पैदा करने का काम करती है,जिसे तोड़े जाने की आवश्यकता है । प्रस्तुत लेख हिन्दी सिनेमा में दलित प्रसंगों को लेकर कौन-कौन सी फिल्में बनीं हैं, उनकी क्या वस्तु स्थिति है, उसकी पृष्ठभूमि में कैसे कारण काम करते हैं और इस क्षेत्र में क्या संभावनाएं हैं उसको रेखांकित करने का प्रयत्न हुआ है |
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