राष्ट्रीय एकता का सवाल और अब्दुल बिस्मिल्लाह का लेखन
Keywords:
साझी विरासत, संकीर्णता, साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्ष, राष्ट्रीय प्रणालीAbstract
हिन्दुस्तानी सभ्यता- संस्कृति के निर्माण में अलग- अलग जातियों, नस्लों, विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों का योगदान रहा हैl इसीलिए भारतीय समाज की एक धर्म एवं संस्कृति पर आधारित किसी भी वस्तु का तसव्वुर नहीं कर सकतेl अब्दुल बिस्मिल्लाह के कथा- साहित्य के पात्र समाज को धर्म, जाति, सम्प्रदाय एवं भाषा के नाम पर बाँटने वालों से लगातार जूझते हैंl एक तरफ वे अपने धर्म एवं समाज की रूढ़ियों, अंधविश्वासों, जड़ परम्पराओं एवं अशिक्षा के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते हैं, तो दूसरी तरफ साम्प्रदायिक ताकतों से भी दो- दो हाथ करते हुए दिखाई देते हैंl सामासिक संस्कृति को बल देने का काम हमेशा से साहित्य करता रहा हैl सामासिक संस्कृति की प्रतिक्रिया में संकुचित एवं संकीर्ण विचारों की वह धारा बह निकली जिसे साम्प्रदायिकता कहा गयाl साम्प्रदायिक विचारधारा का उदय आधुनिक भारत में हुआl भारत के इतिहास में आधुनिक काल से पहले साम्प्रदायिक दंगों का इतिहास नहीं मिलता हैl अंग्रेजी शासक से पहले विभाजनकारी मानसिकता और बिखराव समाज में दिखाई नहीं देता हैl उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा भारत के इतिहास की साम्प्रदायिक व्याख्या की परम्परा ने दोनों समुदायों के बीच दूरी पैदा कीl साम्प्रदायिकता का उदय और विकास ब्रिटिश शासकों की फूट डालो और राज करो की नीति के तहत हुआ थाl वे साम्प्रदायिक ताकतों को इसलिए भी बढ़ावा देते थे; क्योंकि ये ताकतें राष्ट्रवादी और सामंतवाद विरोधी ताकतों को कमज़ोर करने में मदद करती थीl अब्दुल बिस्मिल्लाह ने अपने कथा साहित्य में उन साझे मूल्यों को भी चित्रित किया है जो भारतीय संस्कृति की विशेष पहचान हैl इनके कथा- साहित्य में चित्रित सामाजिक सांस्कृतिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता के जरिए सामाजिक समरसता को मजबूती प्रदान की गई हैl इनके कथा-साहित्य के चरित्र भारतीय संस्कृति की सामासिकता के पक्षधर के रूप में उभरते हैं, तथा साम्प्रदायिकता के खिलाफ लगातार जूझते हुए ‘सेक्यूलिरिज्म’ को एक नारे के तौर पर नहीं बल्कि जीवन जीने की शैली के रूप में प्रस्तुत करते हैंl
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