आत्मकथाओं में स्त्री दलन और मुक्ति

Authors

  • उमा मीणा सह-आचार्य, हिंदी विभाग, मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली

Keywords:

बंधन, स्वतंत्रता, परंपरा, मुक्ति, पहचान, निर्णय, प्रतिरोध

Abstract

पारिवारिक और सामाजिक संरचना में परम्पराओं और मर्यादाओं के नाम पर स्त्रियों को कई प्रकार के बंधनों में बांधकर रखा जाता है जिनके कारण पुरुषों के समान वे अपना विकास नहीं कर पातीं। इन दोहरे मानदंडों के प्रति स्त्री ने अपना आक्रोश और प्रतिरोध अपनी आत्मकथाओं में दर्ज किया है। विविध पारिवारिक और सामाजिक बंधनों में जिस प्रकार के शोषण और भेदभाव के कारण वे सिकुड़ी और सिमटी रही हैं, उन बंधनों से मुक्त होने की अपनी झटपटाहट और मुक्ति के प्रयासों को वे अपनी आत्मकथाओं में प्रस्तुत करती हैं । स्त्री चाहे वह जिस भी देश, संप्रदाय, समाज, जाति, वर्ग की हो उन्हें इस प्रकार के संघर्षों से गुजरना पड़ा है। तहमीना दुर्रानी, प्रभा खेतान, मैत्रेयी पुष्पा, मन्नू भण्डारी अपनी आत्मकथाओं में परिवारों में लड़के और लड़की के बीच किए जाने वाले भेदभाव, चाहे वह उनके पालन- पोषण में हों, उनके खेलकूद, शिक्षा-दीक्षा आदि में, सभी को अपने बचपन की स्मृतियों में याद करती हैं । इनमें से बहुत सारी लेखिकाओं को शिक्षा प्राप्ति के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ा है। इस्मत चुगताई, मैत्रेयी पुष्पा और सुशीला टांकभौरे  की आत्मकथाएं स्त्री शिक्षा की जद्दोजहद को प्रस्तुत  करती हैं। भारतीय समाज में विवाह व्यक्तिगत मामला नहीं है वरन लड़के-लड़कियों के लिए जीवनसाथी का चुनाव प्रायः माता-पिता द्वारा किया जाता है। शिक्षा प्राप्त कर अपने पैरों पर खड़ी होने वाली स्त्री के लिए भी विवाह के निर्णय की स्वतंत्रता परिवार और समाज के द्वारा नहीं मिलती है। मैत्रेयी पुष्पा की आत्मकथा ‘कस्तूरी कुंडली बसे’ , रमणिका गुप्ता की आत्मकथा ‘हादसे’ और मन्नू भंडारी की आत्मकथा ‘एक कहानी यह भी’ तथा कौशल्या बैसंत्री  की आत्मकथा ‘दोहरा अभिशाप’ में इस प्रकार की स्थितियां देखने को मिलती हैं । अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा के बल पर किसी मुकाम को हासिल कर लेने वाली स्त्री भी प्रायः दोयम दर्जे पर रखी जाती है। स्त्रियों को साहित्य क्षेत्र में , राजनीति में तथा व्यापारिक क्षेत्र में भी तमाम उपलब्धियों के बावजूद वो सम्मान और प्रतिष्ठा नहीं मिल पाती जो एक पुरुष प्राप्त करता है। स्त्री के श्रम और यौन शोषण की स्थितियां घर और बाहर दोनों जगह बनी रहती हैं जिन से टकराते हुए स्त्री अपनी पहचान बनाती है। तहमीना दुर्रानी और रमणिका गुप्ता जहाँ राजनीति में अपनी पहचान बनाती हैं तो इस्मत चुगताई, मन्नू भण्डारी और मैत्रेयी पुष्पा साहित्यिक क्षेत्र में अपना नाम दर्ज करती हैं, वहीँ प्रभा खेतान लीक से अलग चलते हुए व्यापारिक क्षेत्र में उपलब्धियां अर्जित करती हैं ।

 

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Published

2022-05-12

How to Cite

मीणा उ. . (2022). आत्मकथाओं में स्त्री दलन और मुक्ति. पूर्वोत्तर प्रभा, 1(2 (Jul-Dec), p.92–96. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/39