संस्कृत व्याकरण शास्त्र में पाणिनीय अष्टाध्यायी का महत्व
Keywords:
सूत्र के प्रकार, पाणिनि एवं अष्टाध्यायी, कात्यायन एवं पतञ्जलि की दृष्टि, शैलीAbstract
पाणिनीय अष्टाध्यायी व्याकरण शास्त्र का एक विलक्षण ग्रन्थ है । महर्षि पाणिनि ने अपनी सूक्ष्मेक्षिका द्वारा संस्कृत के अशेष शब्द भण्डार का अवलोकन कर, उन्हें सूत्र शैली में निबद्ध किया । पाणिनीय सूत्र विश्व साहित्य की अमूल्य निधि है । चतुर्दश (१४) माहेश्वर सूत्रों से भगवान् पाणिनि ने अष्टाध्यायी का विशाल शब्द शिल्प बनाया । पाणिनि का व्याकरण वर्तमान समय में प्राचीन भारतीय शब्द विद्या व्याकरण के रूप में उपलब्ध है । संस्कृत व्याकरण में सर्वप्रथम मूल शब्द के रूपों को अलग किया जाता है । धातु एवं प्रत्यय के भेद को पहचाना प्रत्ययों के अर्थों का निश्चय किया जाना तथा शब्द विद्या का निश्चित एवं पूर्ण शास्त्र तैयार किया जाना होता है। वैदिक पदों को समझने के लिए जितनी आवश्यकता ‘यास्क’ कृत ‘निरुक्त’ कृति की है, उतनी ही आवश्यकता व्याकरणशास्त्र की भी है । इसी महत्व को देखते हुए पाणिनीय अष्टाध्यायी को समझना अत्यधिक आवश्यक है । अष्टाध्यायी में सूत्रों का सङ्कलन है, जो वैदिक एवं लौकिक दोनों रूपों में उपलब्ध है । अष्टाध्यायी की शैली अत्यन्त सुबोध है । अष्टाध्यायी विलक्षण रचना कौशल और संयोजन के कारण आज भी पाणिनि का यह शास्त्र शब्द विद्या का उत्कृषटतम निदर्शन कहा जाता है । संस्कृत व्याकरण शास्त्र के त्रिमुनि पाणिनि, कात्यायन एवं पतञ्जलि हैं । पाणिनीय अष्टाध्यायी के पश्चात् इनके सूत्रों पर कात्यायन ने वार्तिक तथा भगवान् पतञ्जलि ने महाभाष्य लिखा तथा महाभाष्य के अनन्तर अनेक व्याख्या ग्रन्थ लिखे गए । वस्तुतः शब्द शास्त्रीय विचार धाराओं और चिन्तन तथा दर्शन की अष्टाध्यायी ज्ञान गंगोत्री है । जिसकी प्रतिष्ठा युगों तक अक्षुण्ण रहेगी ।
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