राम कथा में स्त्री
विशेष सन्दर्भ : नरेन्द्र कोहली
Keywords:
समाज शास्त्र, अस्तित्त्व, सनातन, पितृसत्तात्मक, वीर्य शुल्का, आदिवासी, महाकाव्यात्मक उपन्यासAbstract
रामकाव्य में राम का चरित्र सबसे प्रमुखता से उभरा है। राम यहाँ कभी मर्यादा पुरुषोत्तम, शील-गुण संपन्न, वीर और जागरण के अग्रदूत के रूप में उभरे हैं तो कहीं विष्णु-अवतार के रूप में परंतु राम की महानता के आगे अन्य पात्र गौण हो जाते हैं, मुख्यतः स्त्री पात्र। अतः अपनी कथा को समाज शास्त्रीय व्याख्या देने के लिए और समाज की नग्नता को समग्रता में उपस्थति करने के लिए नरेन्द्र कोहली जी ने वाल्मीकि रामायण को आधार स्वरुप ग्रहण किया है। राम कथा में वाल्मीकि से लेकर कोहली तक अगर कुछ नहीं बदला, तो वह है समाज और समाज में स्त्रियों का स्थान। वाल्मीकि का समाज भी स्त्रियों के प्रति उदार नहीं था और न ही संवेदनशील। स्त्रियाँ सदैव भोग की वास्तु ही समझी गई हैं। उनका स्वतंत्र अस्तित्त्व कभी स्वीकारा ही नहीं गया है। उन पर दोषारोपण किए गए, अत्याचार किए गए। सामाजिक नियम और बंधन का हवाला देकर उनका अनुचित लाभ उठाया गया। कभी बलात्कृता हुई तो कभी निष्कासित। ‘अहल्या’ बलात्कृता होती है और पाषाण बन जाती है। अज्ञात कुल-गोत्र में जन्मी सीता एक राजा के द्वारा पाली जाती है परन्तु उसके विवाह के लिए जनक द्वारा ऐसी शर्त रखना, सीता हरण, सबरी का घर घने वन में होना, बाली द्वारा रूमा का अपहरण और बलात्कार तथा मंदोदरी की स्थिति इत्यादि की समाज शास्त्रीय व्याख्या कोहली जी की कथा में देखने को मिलती है। यहाँ स्त्री के दोनों रूपों का चित्रण है- अबला और सबला परन्तु अबला भी समाज के नियमों के अनुसार अत्याचार स्वीकार नहीं करतीं बल्कि मौन विद्रोह व्यक्त करती हैं और यह जता देती है कि खोट इस समाज में ही है। दूसरी ओर स्त्री सशक्तिकरण और स्वतंत्रता के सूत्र भी सीता के द्वारा दिखाते हैं। कोहली जी ने रामकथा की स्त्रियों को आज की सामाजिक समस्याओं के रूप में देखा और अज के सन्दर्भ में उनका सटीक चित्रण किया।
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