ऋतु सम्बन्धी लोक-गीतों में स्त्री
Keywords:
लोक, गीत, स्त्री, राग, दुख, मुक्ति और जीवन ]Abstract
लोक, गीत और स्त्री – तीनों संपूरक हैं। इनमें से किसी एक का भी अभाव नहीं हो सकता। ये तीनों मिलकर जो मिथक गढ़ते हैं, वही लोक है। लोक बिना गीतों का नहीं हो सकता और गीत बिना स्त्री का नहीं हो सकता। लोक को नियम-कानून नहीं चाहिए होता है। वह किताबों और पोथियों पर आश्रित नहीं है। वह अपनी स्वतंत्रता और आधुनिकता में वास्तविक लोकतंत्र है। उसे तथाकथित सभ्य समाजों की जरूरत नहीं है। गीतों की आत्मा व कलेवर स्त्रीत्व से सम्पृक्त है। लोक और गीतों का अस्तित्व स्त्री से है। स्त्री से लोक है, जो स्वाधीन है। इसीलिए स्वाधीनता और परिपूर्णता उसका प्राण है। जीवन वहीं है, जिसमें उल्लास, राग, तृप्ति, आवेग और सुकून का सागर है।
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Published
2022-05-12
How to Cite
चौधरी म. . (2022). ऋतु सम्बन्धी लोक-गीतों में स्त्री. पूर्वोत्तर प्रभा, 1(2 (Jul-Dec), p.53–59. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/29
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Section
लेख
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