चयनधर्मिता का प्रश्न और ‘आषाढ़ का एक दिन’

Authors

  • लवकुश कुमार सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कालिंदी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली

Keywords:

चयनधर्मिता, द्वंद्व, त्रासदी, आत्मकेंद्रित और भावना

Abstract

मोहन राकेश का रचनाकाल 20वीं शताब्दी के छठें और सातवें दशक से संबंधित रहा है। यह वहीं समय है जब नई कविता और नई कहानी आंदोलन को विस्तार मिला। राकेश जी अपने नाटकों में इसी दौर के परिवेश को व्यंजित करने की कोशिश की है। व्यक्तिवाद, अस्तित्ववाद और लघुमानववाद जैसी धारणाओं को केंद्र में रखकर उन्होंने अपनी नाटकों की रचना की। ‘आषाढ़ का एक दिन’ द्वंद्व प्रधान नाटक है। यह द्वंद्व व्यक्ति स्वतंत्रता और परिस्थितियों, भावना और यथार्थ, सत्ता और जनसामान्य तथा एक ही व्यक्ति के विभाजित व्यक्तित्व के बीच बरकरार है। जहाँ व्यक्ति चयनधर्मिता के प्रश्न को लेकर सत्त द्वन्द्वग्रस्त रहता है। नाटक का नायक कालिदास और नायिका मल्लिका है। यह कालिदास, आदि कवि कालिदास न होकर आधुनिक भावबोध से युक्त मध्यमवर्गीय पलायनवादी है। नायिका मल्लिका भावना के भ्रमरजाल में फंसी रहती है। अन्य प्रमुख पात्रों में मल्लिका की माँ अम्बिका, विलोम, प्रियंगुमंजरी और दन्तुल है। गौण पात्रों में मातुल, निक्षेप, रंगिणी, संगिनी, अनुस्वार और अनुनासिक हैं। राकेश जी ने रंगमंच को ध्यान में रखकर ही अपने नाटकों की रचना की। उनका मानना है कि नाटक जैसी साहित्यिक विधा का रंगमंच से अटूट संबंध होना चाहिए। 

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Published

2022-05-12

How to Cite

कुमार ल. (2022). चयनधर्मिता का प्रश्न और ‘आषाढ़ का एक दिन’. पूर्वोत्तर प्रभा, 1(2 (Jul-Dec), p.39–43. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/25