रहीम दोहावली में नैतिक मूल्य
Keywords:
नैतिकता, कवि रहीम, दोहावली, वैयक्तिकता, सामाजिक चेतना, वैयक्तिक नैतिक मूल्यAbstract
समाज में संतुलन व मर्यादा बनाए रखने के लिए कुछ विधि- निषेधमूलक, सामाजिक, व्यावहारिक, आचार संबंधी, धार्मिक और राजनीतिक नियमों का निर्माण देश, काल, पात्र और परिस्थिति के संदर्भ में किया जाता है-जो कि परमार्थ भाव को लिए हुये होते हैं। नैतिक मूल्यों की परम्परा और विकास का यही आधार है। नैतिक मूल्यों के विकास के मूल में मानवहित का भाव विद्यमान होता है। इनके द्वारा ही मानव सद् और असद् में अंतर कर सद् का आचरण करता है। रहीम का सम्पूर्ण जीवन मध्यकालीन शासन और समाज की उठा-पटक के चलते अनेक उतार-चढ़ावों से परिपूर्ण रहा। इन्होंने जीवन में राजसी सुख वैभव भोगा तो जीवन का उत्तरार्द्ध अनेक कष्टों एवं यातनाओं से भरा रहा। रहीम राजनीति से सीधे-सीधे जुड़े होने के साथ-साथ एक सहृदय कवि भी थे। वे अपनी कविता में ‘रहीम’ तखल्लुस में वे अपने नाम से अधिक, अपने तखल्लुस से जाने जाते हैं। उनकी प्रमुख रचना ‘दोहावली’ है। इसमें वैयक्तिक नीति से ओत-प्रोत दोहे हैं, इन दोहों की संख्या को लेकर विद्वानों में रस्पर मतभेद है। फिर भी आचार्य विद्यानिवास मिश्र और गोविंद राजनीश ने रहीम ग्रंथावली में कुल तीन सौ दोहे रखे हैं। वैयक्तिक नैतिक मूल्यों के अंतर्गत व्यक्तित्व का विकास निहित होता है। नैतिक व्यक्ति काम, क्रोध आदि तामसिक वृत्तियों पर नियंत्रण रखकर जीवन को उच्चतर मार्ग पर ले जाने वाले उदात्त तत्त्वों-वीरता, उदारता, नम्रता आदि के माध्यम से आत्म-विकास को संभव बनाता है। संक्षेप में, वैयक्तिक नैतिक मूल्यों से आशय ‘चरित्र बल को बढ़ाने वाले गुणों के ग्रहण और व्यसनों के त्याग से है’।
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