अपने समय का विलक्षण रंगशिल्पीः हबीब तनवीर

Keywords:

हबीब तनवीर, कला और संस्कृति, शास्त्रीयता बनाम लोकपक्ष, देशज शिल्प की तलाश, भारतीय रंग परिदृश्य, भारतीय रंगमंच का पुनर्सृजन, रंगकर्म की लोकोन्मुख धारा

Abstract

भारतीय रंगमंच और पाश्चात्य रंगमंच के संदर्भ में विविध विमर्शों की सुदीर्घ श्रृंखला रही है। बहुत से निर्देशकों ने पाश्चात्य रंगशिल्प को अपनाया, बहुत से निर्देशकों ने शास्त्रीय रंगशिल्प का अनुशीलन किया, ऐसे भी बहुत से निर्देशक हैं जिन्होंने उक्त दोनों के साथ लोकरंग शैली के सामंजस्य पर बल दिया। आज भी उक्त सभी प्रवृत्तियाँ भारतीय रंगमंच की अंग हैं। तथापि हबीब तनवीर जैसे रंग निर्देशक ने एक ऐसी शैली विकसित की, जिसने भारतीय रंगजगत के एक बिल्कुल नवीन पक्ष को उद्घाटित किया। हबीब ने पाश्चात्य रंगमंच का अध्ययन और आधुनिक भारतीय रंगमंच के विविध पक्षों का अनुशीलन के आधार पर यह स्थापित किया कि भारतीय नाट्य की आत्मा वास्तव में लोकनाट्य की विविध शैलियाँ हैं और अपनी विविध नाट्य प्रस्तुतियों के माध्यम से अपनी इस स्थापना को उन्होंने सिद्ध भी किया। हबीब ने बिल्कुल अलग नाट्य शैली विकसित की, जिसे अब नया थिएटर के रूप में जाना जाता है।

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Published

2024-01-02

How to Cite

अपने समय का विलक्षण रंगशिल्पीः हबीब तनवीर. (2024). पूर्वोत्तर प्रभा, 3(1 (Jan-Jun). Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/152