नव-उपनिवेशिक संस्कृति के दौर में नव-वामपंथी कविता

Authors

  • षैजू के कोच्चिन विश्वविद्यालय

Keywords:

नव वामपंथी दृष्टि, भूमंडलीय अमानवीय संस्कृति, समाज में व्याप्त पशुता, प्रतिरोधी स्वर, संवेदनहीनता, प्रौद्योगिकी का चकाचौंध, साम्राज्यवाद इत्यादि

Abstract

सारांश

विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के आन्तरिक मामलों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किये जाने वाले हस्तक्षेप को नव-उपनिवेशवाद (Neo-colonialism) कहा जाता है। नवउपनिवेशवाद की धारणा के माननेवालों का सोचना है कि पूर्व में उपनिवेशी शक्तियों ने जो आर्थिक ढांचा बना रखा था उनका अब भी उन उपनिवेशों पर नियन्त्रण करने में इस्तेमाल किया जा रहा है।यूरोप के देशों ने एक लम्बे समय तक एशिया और अफ्रीका के देशों पर अपना साम्राज्यवादी जाल फेंककर उनका राजनीतिक व आर्थिक शोषण किया लेकिन उन देशों में उभरने वाले स्वतन्त्रता आन्दोलनों ने साम्राज्यवादी देशों के मनसूबों पर पानी फेर दिया। धीरे-धीरे एशिया और अफ्रीका के देश एक-एक करके साम्राज्यवादी चुंगल से मुक्ति पाने लगे। जब साम्राज्यवादी शक्तियों को अपने दिन लदते नजर आए तो उन्होंने औपनिवेशिक शोषण के नए नए तरीके तलाशने शुरू कर दिए। उन्होंने इस प्रक्रिया में उन देशों पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए आर्थिक साम्राज्यवाद का सहारा लिया। स्वतन्त्र होने के बाद नवोदित राष्ट्र इस स्थिति में नही रहे कि वे अपना स्वतन्त्र आर्थिक विकास कर सकें। उनके आर्थिक विकास में सहायता के नाम पर विकसित साम्राज्यवादी देशों ने डॉलर की कूटनीति (डॉलर डिप्लोमैसी) का प्रयोग करके उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया और धीरे-धीरे वे नए साम्राज्यवाद के जाल में इस कदर फंस गए कि आज तक भी वे विकसित देशों के ही अधीन हैं। इस व्यवस्था को नव-उपनिवेशवाद के नाम से जाना जाता है।इस नव उपनिवेशवाद के नकारात्मक पक्ष को ही नव वामपंथी कविता दर्शाती हैं।

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Author Biography

षैजू के, कोच्चिन विश्वविद्यालय

शोधार्थी, कोच्चिन विश्वविद्यालय

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Published

2022-05-06

How to Cite

षैजू के. (2022). नव-उपनिवेशिक संस्कृति के दौर में नव-वामपंथी कविता. पूर्वोत्तर प्रभा, 1(1 (Jan-Jun), p.15–18. Retrieved from http://supp.cus.ac.in/index.php/Poorvottar-Prabha/article/view/14