काँगड़ा जनपद के संस्कार-गीतों की संवेदनात्मक मनोभूमि
Keywords:
लोक परंपरा, संस्कृति, लोकगाथा, देव-परंपरा, सहजीवनAbstract
प्रस्तुत शोध आलेख का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति या लोक परंपरा का निदर्शन है। यह आलेख हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद पर आधारित है जो अपने पहाड़ी संस्कार, सादगी एवं मिलनसारिता के लिए जाना जाता है। वैश्वीकरण की तेज आंधी जिस तरीके से संस्कृतियों को खंडित कर रही है, उन्हें मिटा रही है ऐसे में लोक को बचाने की जिम्मेदारी सबकी है। प्रस्तुत आलेख यहां के पहाड़ी जीवन की पृष्ठभूमि में लिखा गया है जिसमें हिमाचल के 12 जनपदों की छाया दिखाई पड़ती है । हिमाचल के लोक में लोक गाथा का जो प्रभाव दिखाई पड़ता है उसको तलाशने की कोशिश की गई है, विभिन्न लोकगीत जो मिथक आधारित हैं या राम और कृष्ण की लीलाओं पर आधारित हैं उनके माध्यम से लोक जीवन में उनके प्रभाव को भी देखने की कोशिश की गई है।
समाज में अमीर और गरीब की जो खाई दिखाई पड़ती है, जो विभाजक रेखा दिखाई पड़ती है उसको भी काँगड़ा के एक चर्चित गीत 'गरीबनी दा जाया' के माध्यम से देखने का प्रयास किया गया है जिसमें एक साधारण व्यक्ति प्रयास करता है कि उसको सभी का स्नेह मिले, वह समाज के लिए कारगर भूमिका का निर्वाह प्रस्तुत कर सके। प्रेम की जो विविध स्वरूप हैं उसे वनस्पतियों,जीव-जंतुओं आदि के सहजीवन के माध्यम से प्रस्तुत आलेख में देखने का प्रयास है। जीवन का विविध रुप हर्ष-विषाद की छाया के साथ मिथक और संस्कृति के माध्यम से प्रस्तुत आलेख में परिलक्षित होता है।
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